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 पाणिनि (७०० ई॰पू॰) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण थे।उन्होंने एक व्याकरण ग्रंथ की रचना की जो चार भागों में लिखा गया है। प्रथम महेश्वर 14 सूत्रों की रचना पाणिनि ने की थी। इसे महेश्वर (शिव) द्वारा वरदान के रूप में दिया गया कहा जाता है। इसीलिए प्रथम रचना महेश्वरसूत्र कहलाती है। दूसरी अष्टाध्यायी में आठ अध्याय और लगभग चार हजार सूत्र हैं। विश्व में संस्कृत भाषा का शुरुआत नेपाल के हिमालय पर्वत हिमवतखण्ड से हुआ था। हिमालय पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारान्तर से तत्कालीन सनातनी समाज का पूरा चित्र मिलता है। 



पाणिनि का जन्म:

पाणिनि का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लगभग 2500 साल पहले स्थित महाजनपद शाकलान्द नामक स्थान पर हुआ था।पाणिनि के माता-पिता के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है।

पाणिनि काप्रारंभिक जीवन:

पाणिनि के प्रारंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। उन्होंने संस्कृत व्याकरण को विस्तारपूर्वक विश्लेषण किया था और अपनी व्याकरण सूत्रों के माध्यम से संस्कृत भाषा को संरचित किया था। उनके समय के जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन उनके द्वारा लिखित ग्रंथों का विस्तृत अध्ययन उनके विचारों और समय के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के बारे में हमें जानकारी प्रदान करता है।

पाणिनि की प्रारंभिक शिक्षा:

पाणिनि की प्रारंभिक शिक्षा के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, उन्होंने अपने ग्रंथों में विविध विषयों की व्याख्या की है, जो इस बात का संकेत देती है कि वे बहुविषयी शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। उन्होंने अपनी शिक्षा और विद्यालय के बारे में कोई विवरण नहीं छोड़ा है।पाणिनि के गुरु का नाम अनुमति करें, हमें इस बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। पाणिनि ने अपने ग्रंथों में अपने गुरु के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया है।

पाणिनि के कृतियाँ :

पाणिनि ने अनेक ग्रंथ लिखे थे, लेकिन उनमें से सबसे प्रसिद्ध है "अष्टाध्यायी" जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित है। इसके अलावा, उन्होंने "दात्तक पञ्चाशिका", "उनादि सूत्र वृत्ति", "गणपाठ", "वार्तिक" और "महाभाष्य" जैसे अन्य ग्रंथ भी लिखे थे

  1. महाभाष्य: यह पाणिनि का सबसे बड़ा ग्रंथ है जो उनके अष्टाध्यायी की टिप्पणी है। इसमें उन्होंने अपने व्याकरण सूत्रों की व्याख्या की है और उन्हें विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से समझाया है।

  2. वार्तिक: इस ग्रंथ में पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी में उल्लेखित विषयों पर अधिक विस्तार से विचार किए हैं। इस ग्रंथ में उन्होंने व्याकरण सूत्रों की व्याख्या और उन्हें समझाने के उपाय दिए हैं।

  3. दात्तक पञ्चाशिका: इस ग्रंथ में पाणिनि ने संस्कृत भाषा के अनेक शब्दों का उपयोग करते हुए वाक्यों का विश्लेषण किया है। इस ग्रंथ में उन्होंने वाक्य विन्यास की विस्तृत व्याख्या की है।

  4. उनादि सूत्र वृत्ति: इस ग्रंथ में पाणिनि ने उनादि सूत्रों का विवरण किया है जो वेदों के अध्ययन के लिए उपयोगी होते हैं। इस ग्रंथ में उन्होंने उनादि सूत्रों की व्याख्या की है और इन्हें समझाने के तरीके बताए हैं।

  5. गणपाठ: इस ग्रंथ में पाणिनि ने संस्कृत भाषा के विभिन्न शब्दों की गणना की है। इस ग्रंथ में उन्होंने विभिन्न शब्दों की वर्गीकरण की विस्तृत व्याख्या की है।

ये थे कुछ प्रसिद्ध ग्रंथ जो पाणिनि ने लिखे थे। इन ग्रंथों के अलावा भी कुछ ग्रंथ हो सकते हैं, लेकिन वे वर्तमान में नहीं हैं।


अष्टाध्यायी:

अष्टाध्यायी पाणिनि द्वारा लिखित संस्कृत व्याकरण पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।अष्टाध्यायी को छह वेदांगों में मुख्य माना जाता है। इसमें 3155 सूत्र हैं और आरंभ में वर्णसमाम्नाय के 14 प्रत्याहार सूत्र होते हैं। अष्टाध्यायी का परिमाण एक सहस्र अनुष्टुप श्लोक के बराबर होता है। महाभाष्य में अष्टाध्यायी को "सर्ववेद-परिषद्-शास्त्र" भी कहा गया है। अर्थात् अष्टाध्यायी का संबंध किसी वेदविशेष तक सीमित नहीं होता था और सभी वैदिक संहिताओं से इसका संबंध था। इस ग्रंथ में पाणिनि ने अनेक पूर्वाचार्यों के मतों और सूत्रों का संग्रह किया है। उनमें से शाकटायन, शाकल्य, अभिशाली, गार्ग्य, गालव, भारद्वाज, कश्यप, शौनक, स्फोटायन और चाक्रवर्मण का उल्लेख पाणिनि ने किया है। इस ग्रंथ में पाणिनि ने संस्कृत भाषा के वर्ण, संधि, समास, व्याकरण सूत्रों और उनके उदाहरणों की विस्तृत व्याख्या की है। यह ग्रंथ 8 अध्यायों (chapters) में विभाजित होता है और प्रत्येक अध्याय में विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है।

अध्याय 1 में वर्णमाला और उसके नियमों की व्याख्या है।

अध्याय 2 में संधि और संधि के नियमों की विस्तृत व्याख्या है।

अध्याय 3 में उपदेश, संज्ञा, विभक्ति और वाच्य के नियमों की चर्चा है।

अध्याय 4 में समास के नियमों की व्याख्या है।

अध्याय 5 में क्रिया, कारक, उपसर्ग और प्रत्ययों के नियमों की चर्चा है।

अध्याय 6 में अव्यय, उपसर्ग, प्रत्यय और संज्ञाविषयक के नियमों की व्याख्या है।

अध्याय 7 में समास, पदप्रकरण, वाक्यप्रकरण और अनुष्ठुभ के नियमों की चर्चा है।

अध्याय 8 में समास, समासोपसर्ग, विकरण, भाववाचक, तत्पुरुष, अव्ययीभाव और आश्रयवाचक विभक्तियों के नियमों की व्याख्या है।

अष्टाध्यायी एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो संस्कृत व्याकरण के विषय में विस्तृत ज्ञान प्रदान करता है।


पाणिनि किसके दरबारी कवि थे ?

पाणिनि के बारे में इतिहास और पुराण विशेषज्ञों के अनुसार उन्हें किसी दरबार कवि के रूप में नहीं माना जाता है। वे महान विद्वान और व्याकरणाचार्य थे जिन्होंने अपने जीवन के दौरान संस्कृत भाषा के व्याकरण के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपनी विद्या और ज्ञान का सार संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ "अष्टाध्यायी" में समाहित किया था।

इसलिए, पाणिनि को किसी दरबार कवि के रूप में नहीं माना जाता है। उन्हें एक महान विद्वान और व्याकरणाचार्य के रूप में संबोधित किया जाता है।


पाणिनि की मृत्यु कैसे हुई ?

पाणिनि की मृत्यु के बारे में हमें कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। पाणिनि के जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है और उनकी मृत्यु के बारे में भी उत्पन्न विभिन्न अभिप्राय हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि पाणिनि की मृत्यु लगभग 4वीं शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी। कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि उनकी मृत्यु लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी।

यह जानना बहुत मुश्किल है कि पाणिनि की मृत्यु कैसे हुई थी। उनके जीवन के बारे में इतिहास और पुराण विशेषज्ञों के पास भी केवल अल्प जानकारी है।



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